तिथि का महत्व, प्रभाव और उपयोग

हमारे जीवन में तिथि का महत्व अधिक है इसलिए ही बार-बार “तिथि” और “मिति” शब्द सुनने को मिलते हैं। खासकर जब कोई पूजा, व्रत, शादी या अन्य शुभ काम की योजना बन रही हो। पर क्या आपने कभी सोचा है कि ये तिथि और मिति आखिर होती क्या हैं, इनका इतना महत्व क्यों होता है, और इन्हें कैसे समझा जाए ?

जैसा की आप जानते है कि भारतीय ज्योतिष और किसी भी कार्य के लिए तिथि की सबसे पहले आवश्यकता होती हैं। हिन्दू यानि सनातन धर्म में कोई भी कार्य तिथि को देखने के बाद ही तय किया जाता है क्योंकि इसकी अपनी एक विशेष महत्ता है। वैसे तो मुहूर्त , समय , दिन , वार आदि सभी का अपना महत्व है लेकिन तिथि का जो स्थान है वह विशेष हैं, इसलिए आज हम आपको इनके बारे में विस्तार से बताएँगे जिसके बाद आपको तिथि के सम्बन्ध में सभी जानकारी हो जाएगी।

तिथि का महत्व, प्रभाव और उपयोग

चलिए आज इस लेख में हम तिथि और मिति से जुड़ी सारी बातों को एक-एक करके आसान भाषा में समझते हैं।

तिथि और मिति क्या हैं?

तिथि और मिति दोनों समय के निर्धारण से जुड़े शब्द हैं, लेकिन इनका आधार अलग होता है:

  • “तिथि” भारतीय पंचांग (हिंदू कैलेंडर) के अनुसार चंद्रमा की स्थिति पर आधारित होती है। यह एक चंद्र दिवस होता है जो सूर्य और चंद्रमा के बीच के कोण से तय होता है।
  • “मिति” नेपाल और कुछ भारतीय इलाकों में प्रचलित शब्द है, जो आमतौर पर तिथि का ही रूप है, लेकिन अलग कैलेंडर पर आधारित हो सकता है।

मुख्य अंतर: तिथि चंद्र गणना पर आधारित होती है, जबकि मिति क्षेत्र विशेष की परंपराओं के अनुसार हो सकती है।

भारतीय ज्योतिष में तिथियों का महत्व

भारतीय धर्म और संस्कृति में तिथियां अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं ऐसे में तिथि का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। कोई भी शुभ कार्य, पूजा, व्रत, विवाह या अनुष्ठान तिथि देखकर ही किए जाते हैं।

  • शुभ तिथि में कोई भी नया कार्य आरंभ किया जाता है।
  • अशुभ तिथि में यात्रा, खरीदारी, विवाह आदि वर्जित होते हैं।

त्योहार भी तिथियों पर आधारित होते हैं। जैसे:

  • दीपावली – अमावस्या
  • रक्षा बंधन – श्रावण पूर्णिमा
  • गणेश चतुर्थी – भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी

एक चंद्र मास में कितनी तिथियां होती हैं?

एक चंद्र मास में कुल 30 तिथियां होती हैं –

  • 15 तिथियां शुक्ल पक्ष (चंद्र बढ़ता है)
  • 15 तिथियां कृष्ण पक्ष (चंद्र घटता है)

दोनों पक्ष इस प्रकार होते हैं:
प्रतिपदा → द्वितीया → तृतीया → चतुर्थी → पंचमी → षष्ठी → सप्तमी → अष्टमी → नवमी → दशमी → एकादशी → द्वादशी → त्रयोदशी → चतुर्दशी → पूर्णिमा/अमावस्या

क्षय तिथि और वृद्धि तिथि क्या होती हैं?

  • क्षय तिथि: जब कोई तिथि पूरे दिन में दिखाई ही नहीं देती, उसे क्षय तिथि कहते हैं।
  • वृद्धि तिथि: जब एक तिथि दो दिन तक रहती है, तो वह वृद्धि तिथि कहलाती है।

उदाहरण: अगर एक दिन में सूर्य और चंद्रमा की गति के कारण कोई तिथि जल्दी खत्म हो जाती है, तो वह क्षय हो जाती है।
ये विशेष रूप से मुहूर्त निर्धारण में मायने रखती हैं।

अमावस्या और पूर्णिमा का महत्व

  • अमावस्या – जब चंद्रमा नहीं दिखाई देता। तामसिक कार्य, पितृ पूजन और तर्पण आदि इस दिन किए जाते हैं।
    • त्योहार: दीपावली, शनि अमावस्या
  • पूर्णिमा – जब चंद्रमा पूरा दिखाई देता है। यह दिन शुभ कार्यों, दान, स्नान आदि के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
    • त्योहार: गुरु पूर्णिमा, होली, रक्षाबंधन

तिथियों के स्वामी और उनका प्रभाव

हर तिथि का एक स्वामी ग्रह या देवी-देवता होते हैं। इन स्वामियों का प्रभाव उस तिथि पर होने वाले कार्यों पर पड़ता है। नीचे देखें सारणी:

तिथिस्वामी
प्रतिपदाअग्नि
द्वितीयाब्रह्मा
तृतीयागौरी (पार्वती)
चतुर्थीगणेश
पंचमीनाग देवता
षष्ठीकार्तिकेय
सप्तमीसूर्य
अष्टमीदुर्गा
नवमीदुर्गा
दशमीयम
एकादशीविष्णु
द्वादशीविष्णु
त्रयोदशीशिव
चतुर्दशीकाली / नरकासुर
अमावस्या/पूर्णिमापितर/चंद्रमा

जन्म तिथि के स्वामी का प्रभाव

जिस तिथि को कोई व्यक्ति जन्म लेता है, उस तिथि का स्वामी उसकी स्वभाव, स्वास्थ्य, भाग्य और सोच को प्रभावित करता है।

उदाहरण:

  • एकादशी जन्म: धार्मिक स्वभाव, दयालु हृदय
  • चतुर्थी जन्म: रचनात्मक और थोड़ा जिद्दी
  • अष्टमी जन्म: मजबूत इच्छाशक्ति, कभी-कभी क्रोधी

कौन सी तिथियां किस कार्य के लिए शुभ हैं ?

कार्यशुभ तिथियां
विवाहद्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, एकादशी
गृह प्रवेशद्वादशी, त्रयोदशी, पूर्णिमा
व्यवसाय प्रारंभचतुर्थी, पंचमी, दशमी
यात्रासप्तमी, नवमी, द्वितीया

किन तिथियों में कौन से कार्य वर्जित हैं?

  • अमावस्या: विवाह या गृह प्रवेश से बचें
  • अष्टमी और चतुर्दशी: तेज और संघर्षपूर्ण कार्यों के लिए ठीक, पर विवाह के लिए नहीं
  • एकादशी: खाने-पीने और विशेष क्रियाओं में संयम बरतें

इन निषेधों का कारण यह है कि इन दिनों का ऊर्जा प्रभाव अलग होता है।

तिथि के स्वामी की पूजा और उपाय

यदि किसी तिथि विशेष की समस्या हो रही हो या जन्मतिथि का प्रभाव नकारात्मक हो, तो उस तिथि के स्वामी की पूजा लाभदायक मानी जाती है।

उदाहरण:

  • एकादशी तिथि के लिए: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
  • चतुर्थी के लिए: “ॐ गं गणपतये नमः”
  • अमावस्या के लिए: पितृ तर्पण, हनुमान पूजा

तिथि का व्यावहारिक उपयोग और गलतफहमियां

  • पंचांग देखकर हर दिन की तिथि जानिए।
  • निर्णय जैसे शादी, यात्रा, नौकरी का आरंभ करने से पहले तिथि ज़रूर जांचें।
  • सिर्फ वार (जैसे सोमवार) देखकर निर्णय लेना अधूरा होता है।

तिथि और वार का संबंध

किसी भी दिन की तिथि और वार दोनों मिलकर उस दिन की ऊर्जा और प्रभाव को तय करते हैं।

उदाहरण:

  • मंगलवार + अष्टमी: उग्र योग – तंत्र साधना के लिए श्रेष्ठ
  • गुरुवार + एकादशी: बहुत शुभ योग – दान, धर्म, पूजा

तिथि से जुड़ी सामान्य गलतफहमियां

  • केवल वार देखकर काम करना सही नहीं है।
  • सब तिथियां अशुभ नहीं होतीं – परिस्थिति और कार्य के अनुसार तिथि का असर बदलता है।

क्या तिथियों का वैज्ञानिक आधार है?

हाँ!

  • तिथियां चंद्रमा की कलाओं पर आधारित होती हैं।
  • चंद्रमा का मन और जल तत्व से संबंध होता है – इसीलिए इसका प्रभाव मानसिक स्थिति, निर्णय क्षमता और शरीर के जल तत्वों पर पड़ता है।

निष्कर्ष:

तिथि केवल कैलेंडर का एक भाग नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा और जीवन के निर्णयों की आध्यात्मिक और वैज्ञानिक आधारशिला है। अब आप समझ गए होंगे की तिथि का महत्व कितना ज्यादा है। यदि आप तिथियों को समझें और सही तरीके से उपयोग करें, तो आपके जीवन में संतुलन, सफलता और शांति बनी रह सकती है।

Read this article: Grah Shanti | 9 ग्रह की शांति से जुड़ें विशेष उपाय

अगर आपको यह लेख उपयोगी लगा हो, तो कृपया शेयर करें और अपने अनुभव नीचे कमेंट में बताएं।

Leave a Comment